कोई भी देश खासकर लोकतंत्र बिना किसी संविधान के नहीं चल सकता। देश के सुचारू रूप से चलने के लिए संविधान की जरूरत पड़ती ही है। हरेक देश का अपना एक संविधान है। लेकिन भारत में संविधान का महात्मय इतना अधिक है कि हम हर साल गणतंत्र दिवस के रूप में संविधान लागू होने का दिन मनाते आये हैं। 2014 में देश में एक राष्ट्रवादी सरकार बनने के बाद इस दिशा में और काम हुआ। नवंबर, 2015 में सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री ने तय किया कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जायेगा। हम जानते हैं कि हमारे देश का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है जिसमें 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां शामिल हैं। अगर हमारा संविधान कोई कलाकृति मानी जाये तो इसके कलाकार निस्संदेह बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर कहे जायेंगे। लेकिन विडम्बना यह रही कि इतने विशाल, विविधताओं से भरे इस देश को एकसूत्र में पिरोने वाले, कमजोर लोगों को बराबरी का हक़ देने वाले संविधान को बनाने वाले बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का उल्लेख गणतंत्र दिवस में बहुत कम होता आया। गणतंत्र दिवस की महत्ता कहीं न कहीं झांकियों तक ही सिमटने लगी। इसलिए इस दिन (26 नवम्बर) जब संविधान सभा ने औपचारिक रूप से भारत के संविधान को अपनाया था, को बाबासाहेब और उनकी अथक मेहनत के प्रयासों को याद करने के दिन के तौर पर मनाया जाना शुरू हुआ है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने बार बार अपने भाषणों इस दिन की महत्ता बताते हुए में डॉ. अंबेडकर से प्रेरणा लेने की बात कही है।
संविधान के प्रति देश का हर नागरिक और बच्चा-बच्चा सजग हो, अपने अधिकारों और कर्तव्यों को जाने इसके लिए भी संविधान दिवस का विशेष महत्त्व है। संविधान की प्रस्तावना से भी देश का हर सामान्य नागरिक अगर परिचित हो जाये और उस दिशा में अपने विचारों को प्रशस्त करने लगे, तो संविधान बनाने का उद्देश्य बहुत कुछ पूरा हो जायेगा और यही बाबासाहेब अंबेडकर को हरेक देशवासी की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अच्छी बात यह है कि इस दिशा में केंद्र सरकार कई तरह से पहल कर रही है। विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से संविधान दिवस मनाने और उसके मूल्यों को समझाने के प्रयास किये जा रहे हैं। कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में छात्रों-अध्यापकों से लेकर अलग-अलग सरकारी कार्यालयों के कर्मचारियों तक संविधान दिवस का संदेश पहुँच रहा है। हम जानते हैं कि संविधान जिस कमजोर, शोषित, दलित व्यक्ति के रक्षण और उत्थान की बात करता है उसतक उसके संवैधानिक अधिकार सही मायनों में पहुँच ही नहीं पाए हैं। और जो वर्ग समाज में बेहतर हालात में हैं वे अपने संवैधानिक कर्तव्यों से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। ऐसे में संविधान दिवस की महत्ता और भी बढ़ जाती है। संविधान की प्रस्तावना की आखिरी पंक्ति में संविधान को ‘आत्मार्पित’ करने की बात कही गयी है। आत्मार्पित यानि स्वयं को अर्पित करना। यहाँ स्वयं कोई व्यक्तिवाचक नहीं बल्कि जातिवाचक संज्ञा है जो स्वयं का नहीं, भारतवासी का बोध कराती है। अर्थात्, जबतक राष्ट्र का हरेक नागरिक संविधान के मूल्यों को आत्मसात नहीं करता तबतक यह सम्पूर्ण रूप से लागू नहीं कहा जा सकता। संविधान दिवस नागरिकों में संविधान के प्रति जागरुकता फैलाने की इस दिशा में एक सुदीर्घ और महत्वपूर्ण प्रयास है।
और यह सब तब हो रहा है जब विपक्ष द्वारा केंद्र सरकार पर संविधान की हत्या करने, उसे नष्ट करने जैसे हास्यास्पद आरोप लगाये जा रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार संविधान को लगातार मजबूत करने, उसे जनता का संविधान बनाने पर बल दे रही है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था, मजलूम मुस्लिम महिलाओं के हक़ में तीन तलाक़ को ख़त्म किया जाना, अखंड भारत के निर्माण हेतु अनुच्छेद 370 की समाप्ति आदि ऐसे कदम थे जिन्होंने राष्ट्र के हित में, राष्ट्र की जनता के हित में संविधान को मजबूत करने का काम किया। ज्ञात हो कि संविधान निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर स्वयं अनुच्छेद 370 के धुर विरोधी थे और उन्होंने इसे देश के साथ विश्वासघात बताते हुए इसका ड्राफ्ट तैयार करने से मना कर दिया था। आज देश संविधान दिवस मनाते हुए लगातार मजबूत हो रहे संविधान में अपनी आस्था भी जता रहा है और महान संविधान शिल्पी डॉ. अंबेडकर को श्रद्धासुमन भी अर्पित कर रहा है।
समस्त देशवासियों को इस अवसर पर शुभकामनायें।