गुड गवर्नेंस की नीति और भारत सरकार (शैलेन्द्र कुमार)

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2014 में जब देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार का गठन हुआ तब से बहुत सारे ऐसे काम हुए जो अबतक किसी सरकार ने नहीं किये। इनमें से एक है कई तरह के नए दिवसों का मनाया जाना जो मूलतः प्रधानमंत्री मोदी के विचारों का ही परिणाम थे। अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस, संविधान दिवस तो जनसामान्य में अब काफी लोकप्रिय हो चुके हैं, लेकिन साल 2014 में ही जब अटल बिहारी वाजपेयी और पं. मदन मोहन मालवीय जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया तब सरकार ने यह घोषणा की कि वाजपेयी जी के जन्म दिवस 25 अक्टूबर को ‘गुड गवर्नेंस डे’ के तौर पर मनाया जायेगा। यह एक बड़ा ऐलान था जो किसी तरह की लोकप्रियता हासिल करने के लिए नहीं बल्कि सरकार और सरकारी विभागों की कार्यशैली को प्रभावपूर्ण बनाने के उद्देश्य से किया गया था।

          समाजविज्ञान की विभिन्न शाखाओं में ‘गुड गवर्नेंस’ एक पुराना शब्द है जिसकी कई तरह की व्याख्याएं की गयी हैं। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में गुड गवर्नेंस शब्द का तो प्रयोग नहीं किया लेकिन इस बारे में बहुत कुछ कहा है। कौटिल्य के मुताबिक गुड गवर्नेंस यानि सुशासन ही वो फ्रेमवर्क है जिससे जनता और राज्य का विकास संभव है। इसके लिए उसने राजा यानि शासक की बहुत सी जिम्मेदारियाँ तय की हैं। उसका कहना है कि राजा की निजी ख़ुशी कुछ नहीं होती, प्रजा की ख़ुशी ही राजा की ख़ुशी है; प्रजा का कल्याण ही राजा का कल्याण है। लोकतंत्र में राजा और प्रजा का यह उदाहरण थोड़ा अटपटा लग सकता है लेकिन कौटिल्य ने राजा को राज्य का नौकर तक बतलाया है जिसकी निजी इच्छाएँ कुछ नहीं होतीं। राजा को चाहिए कि वह जन कल्याणकारी योजनायें बनाये और प्रभावी तरीके से उन्हें लागू भी करवाए। राजा के लिए कई कार्य तय किये गये जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर जनता को मूलभूत सुविधाएँ मुहैया कराने तक का ज़िक्र है। यही नहीं इन सबमें विभिन्न संस्थाओं और जनता कि भी भागीदारी सुनिश्चित करने की बात भी अर्थशास्त्र में कही गयी है। यानि कि, ऐसा शासन जहाँ जन सामान्य तक सरकारी सुविधाओं की सीधी पहुँच हो, सबके पास समान अवसर हों, हरेक नागरिक सुरक्षित महसूस करे, जन सामान्य के लिए सरकारी योजनायों से लाभ उठाने की प्रक्रिया जटिल नहीं बेहद आसान हो। इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि गठन के चंद महीनों के अंदर ही कोई सरकार ऐसी प्रक्रिया को आत्मसात करने के लिए कृतसंकल्प हो जाती है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसीलिए बार-बार अपने भाषणों में ‘सबका साथ – सबका विकास – सबका विश्वास’ की बात दोहराई है और सरकार से सत्ता सुख की भावना को हटाकर सेवा भाव अपनाने पर जोर दिया है।

          ‘गुड गवर्नेंस डे’ के आज छह साल पूरे हो रहे हैं। इन छह सालों में मोदी सरकार अपने इस संकल्प पर कितना खरा उतरी है यह देखना आवश्यक हो जाता है। यहाँ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की याद आती है जिन्होंने कहा था कि सरकार की ओर से भेजे गये एक रुपये में 15 पैसे जरूरतमंद जनता तक पहुँचते हैं। आज स्थिति यह है कि किसानों को अगर छह हज़ार रुपये भेजे जाते हैं तो पूरे के पूरे छह हज़ार उनके पास पहुँचते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री जन-धन योजना की बदौलत आज हर घर में बैंक खाता है। डिजिटल इंडिया की पहुँच गाँव-गाँव तक है। इन्टरनेट उपभोक्ता सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रहे, उनकी संख्या गाँवों में तेजी से बढ़ रही है। ऐसी कोई भी सरकारी योजना नहीं है जिसका विवरण इंटरनेट पर विभिन्न सरकारी वेबसाइटों पर नहीं है। एक पढ़ा लिखा ग्रामीण व्यक्ति भी आज अपना फोन निकालकर विभिन्न योजनाओं की जानकारी ले सकता है और अपना आवेदन भी कर सकता है। कोई भी सरकारी प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है और प्रमाण-पत्र डाउनलोड किया जा सकता है। पहले की तरह सरकारी कार्यालयों के न चक्कर लगाने की जरूरत है, न बाबुओं को रिश्वत देने की मजबूरी। सरकारी तंत्र आज जनता की सेवा में घर-घर पहुँच रहा है। इसी संदर्भ में उज्जवला योजना या भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाने की योजना को देखा जाना चाहिए। आज हर घर में एलपीजी है, हर सरकारी स्कूल में शौचालय है, गाँव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। ये योजनायें बिना जन भागीदारी के सफल नहीं हो सकती थीं, प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर लाखों लोगों ने एलपीजी से लेकर रेल टिकट तक की सब्सिडी छोड़ दी। यह एक ईमानदार सरकार के प्रति जनता का ईमानदार भरोसा था। गुड गवर्नेंस सही मायनों में तभी साबित होता है जब सरकारी योजनायें सबसे वंचित वर्ग तक पहुंचें और मोदी सरकार ने बीते छह सालों में साबित कर दिया कि गरीब, वंचित, कमजोर उसकी पहली प्राथमिकतायें हैं। भारत में मुस्लिम महिलायें एक ऐसा ही वंचित समूह है। उनके पति किसी भी नाराजगी, गुस्से या स्वार्थ में उन्हें पल भर में त्याग सकते थे। यह सरकार उन्हें भी ‘गुड गवर्नेंस’ के दायरे में लेकर आयी, ‘तीन तलाक’ जैसी अमानवीय प्रथा को संसद में कानून लाकर गैर कानूनी घोषित किया गया। यह सामाजिक सुरक्षा उन्हें अपने समुदाय से नहीं देश की सरकार से मिली और लाखों मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली। लेकिन हर देश भारत जैसी सहिष्णुता वाला नहीं है। इसी भारतीय उपमहाद्वीप में धर्म के नाम पर हजारों लोग सताये गये जिन्होंने भारत में आकर शरण ली, अनाधिकृत रूप से ही सही वे भारत के निवासी बने। केंद्र सरकार ने ‘शरणागत की रक्षा’ के शाश्वत भारतीय मूल्य का पालन करते हुए उन सबको नागरिकता देने का कानून बनाया और उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया। देश के नागरिकों की सुरक्षा से कोई समझौता न करने की नीति अपनाते हुए देश की वर्तमान सरकार ने देश पर हुए आतंकी हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने के आदेश दिए। फलस्वरूप भारतीय सेना ने पड़ोसी देश के आतंकी ठिकानों पर ताबड़तोड़ सर्जिकल स्ट्राइक कर उन्हें नष्ट कर दिया। महात्मा गाँधी कहते थे, स्वच्छता में ईश्वर का वास होता है। स्वच्छ भारत अभियान का लोगो गांधीजी का चश्मा आज हर गली-मुहल्ले में मौजूद है। देश के प्रधानमंत्री और विभिन्न मंत्री, सरकारी कर्मचारी सब झाड़ू हाथ में लेकर सड़कों पर उतरे। जन-भागीदारी से स्वच्छता का यह मिशन साकार होता दिख रहा है। इन तमाम कार्यों में जनता ने सरकार के प्रति भरोसा जताया और सहयोग किया। यह लोकतंत्र का उत्कृष्ट रूप है जहाँ सरकार जन भागीदारी से जनकल्याण सुनिश्चित कर रही है। सरकार और सरकारी तंत्र में शामिल लोगों का कार्य सेवा होना चाहिए न कि सत्ता का आडंबर, इसलिए सरकार ने वीआईपी कल्चर ख़त्म करने के लिए वाहनों पर लालबत्ती के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी। लालबत्ती जो एक समय सत्ता की शान समझी जाती थी एक झटके में हटा दी गयी, सरकार के मंत्रियों और स्वयं प्रधानमंत्री ने इसका अनुपालन किया। यह जनता की सरकार के जनता के प्रति समर्पण भाव को दर्शाता है। कौटिल्य ने भी शासक के नैतिक आचरण और राज्य के विकास दोनों को एक दूसरे पर निर्भर बतलाया है।

          वर्तमान में समूचे विश्व पर गहराये कोरोना संकट सरकार के गुड गवर्नेंस का चेहरा खुलकर सामने आया। जहाँ तमाम विकसित देशों की सरकारें अपने नागरिकों की समुचित सुरक्षा करने में विफल होती नज़र आयीं, भारत सरकार ने बुद्धिमत्ता से काम लेते हुए नागरिक सर्वोपरि के सिद्धांत पर अमल किया और समूचे देश में लॉकडाउन किया। अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ा, लेकिन करोड़ों लोगों का जीवन सुरक्षित हुआ। कोविड संकट से निपटने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये की राशि केंद्र सरकार ने जारी की। स्वास्थ्य सुविधाओं की ऐसी तीव्र बढ़ोतरी देश ने कभी नहीं देखी। मार्च महीने में हो रहे 15 टेस्ट प्रतिदिन का आंकड़ा आज 11 लाख टेस्ट प्रतिदिन पहुँच चुका है, शुरूआती दिनों में पीपीई किट की कमी का सामना करने वाला भारत आज पीपीई किट का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, तीस से ज्यादा देशों को भारत ने क्लोरोक्वीन दवा भेजी। आज जब कोरोना वैक्सीन तैयार है, भारत इसके उत्पादन में भी सबसे आगे है। इस दौरान बेरोजगारों, वृद्धों, महिलाओं, बेघरों का विशेष ख्याल रखा गया। लोगों के बैंक खातों में पैसे पहुँचाने से लेकर, भोजन वितरण, उज्जवला एलपीजी की पहुँच सब सरकार ने सुनिश्चित की। भारत जैसी विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए यह चुनौती भरा काम था लेकिन प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश ने न सिर्फ इस आपदा का डटकर मुकाबला किया बल्कि इसे अवसर में भी बदला। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत सरकार के इन प्रयासों की सराहना की। भारत ने न सिर्फ़ अपने देशवासियों की रक्षा की बल्कि दुनिया के कई देशों को जरूरी स्वास्थ्य आपूर्ति की, इन सबसे भारत की कद्र दुनियाभर में बढ़ी है।

अटल बिहारी वाजपेयी जी जिनका जीवन जनकल्याण की मिसाल है, के प्रति इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी कि उनके जन्मदिवस पर देश की सरकारें जनता के प्रति अपने समर्पण को दुहरायें। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से जनता को साथ लेकर आगे बढ़ने और जनता के हित में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने कि बात ही तो कही है – परहित अर्पित अपना तन-मन/ जीवन को शत-शत आहुति में/ जलना होगा, गलना होगा/ क़दम मिलाकर चलना होगा।

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